कबीर पाखंड, आडम्बर और दकियानूसी परम्पराओं को तोड़ने के पक्षधर थे, उन्हें भक्ति भाव में समेटना उनके साथ अन्याय है. अपने वाणी और कार्य से विश्व को आज भी झकझोर देने वाले कबीर का मुकाबला करने वाला आज कोई नहीं. कबीर एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ होता है "महान". कबीर को जीवित रहते न वह युग पचा पाया और न आज का युग कबीर को उनकी बातों के साथ अपना पाता है.
काशी से करीब 200 किलोमीटर दूर है मगहर। ऐसी मान्यता है कि काशी में मरने से जहां ‘मोक्ष’ मिलता है, वहीं मगहर में मरने वाले अगले जन्म में गधा नते हैं या नर्क में जाते हैं। यही वजह थी कि संत कबीर अपने जीवन के आखिरी समय में काशी से मगहर चले गए थे। वो इस कथन को गलत साबित करना चाहते थे। कबीर के जीवन को लेकर बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनका कोई प्रमाण नहीं। इनमें से एक यह भी है कि कबीर ने जब प्राण त्याग दिया तब उनके मृत शरीर की जगह फूल रखे मिले थे। जिसे हिंदू और मुसलमान दोनों ने आपस में बांट लिया था। हिंदुओं ने उन फूलों से कबीर की समाधि बना ली और मुसलमानों ने उससे मजार।
कबीर ने कहा भी है - क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा। जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा..।
इसका मतलब है- काशी हो या मगहर का ऊसर, मेरे लिए दोनों एक जैसे है, क्योंकि मेरे हृदय में राम बसते हैं।’