पत्रकारिता का इतिहास बहुत पुराना है। इसके संसाधन अलग-अलग हो सकते है लेकिन उद्देश्य एक ही होता है। लोगों को देश-विदेश की खबरों को आम जनमानस तक पहुंचाना। जनता के हर एक विकास में मीडिया का साथ, चाहे आर्थिक क्षेत्र हो या स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक मुद्दे, सांस्कृतिक आदि में होना चाहिए। जनता की बात को सरकार तक पहुंचाना और सरकार की बात को उनकी भाषा में जनता तक पहुंचाना। मीडिया का काम होता है।। मीडिया का संबंध जनता और सरकार के बीच एक पुल की तरह होता है। मीडिया का काम निष्पक्ष तरीके से बिना भेदभाव किए लोगों की समस्याओं को सरकार के सामने रखना तथा सरकार की नाकामियों को उजागर करना है। यह लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है।
मीडिया का बदलता स्वरूप
मीडिया जनता की आवाज है। आज जिस दौर में जी रहे है उस दौर में मीडिया चाहे प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक मीडिया हो आज सभी सत्ता तथा पूँजीपतियों के हाथ की कठपुतली बन कर रह गई है। जनता के मन में मीडिया के प्रति आक्रोश है। लेकिन वहीं कुछ संगठन तथा कुछ मनुवादि विचारधारा के लोगों के लिए मीडिया बहुत अच्छा काम कर रही है। आज मीडिया के सवालों में से कुछ सवाल गायब दिखाई देते है जैसे बेरोजगारी की समस्या, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास की समस्या, पुनर्वास की समस्या आदि। इतिहास में जब-जब सत्ता को नुकसान होने के खतरे महाशूस होते रहे है तब-तब मीडिया की स्वतन्त्रता से खिलवाड़ किया गया है। लेकिन इस दौर में मिडीया को पूरी तरीके से सत्ता पक्ष अपने मुताबिक कर लिया है। चैनलों को सत्ता के पूंजीवादी दोस्तों द्वारा खरीद लिया गया है। इसलिए ताकि सत्ता के नाकामियों को छुपाया जा सके और सत्ता का गुड़गान कर सके।
लोग न्यूज चैनल देखना बंद कर रहे हैं
आज बहुत ऐसे लोग है जो इलेक्ट्रोनिक मीडिया चैनलों को देखना तक छोड़ दिया है। टीवी पर कुछ चैनलों को छोड़ दिया जाए तो अन्य किसी भी चैनल को खोल के देखिये आप को नजर आएगा कि एक तरफ मौलाना और मंदिर के कोई महंत तथा राजनीतिक प्रवक्ता जो धर्म और जाति के बेफ़जुल बहस करते नजर आएंगे। एक ही खबर को दिन में 10 से 20 बार टेलिकास्ट किया जाता है। पूरे दिन रात नफरती बयान बाजी चलती रहती है। कभी हिन्दू देवी-देवताओं के ऊपर बहस तो कभी मुस्लिम धर्म के ऊपर बहस चलता रहता है। जनता मूकबधिर बनके देखती रहती है। आज की मीडिया से घिन आती है कि किस प्रकार लोगों के मन में नफरत पैदा कर दिया है एक वह समय था जब कांग्रेस की सत्ता थी तब मीडिया उछल-उछल के सरकार की कमियों को उजागर करती थी तथा जनता की समस्याओं को छापा और दिखाया करती थी जिसमें सारे मुद्दे तथा मीडिया के सवाल थे जिसमें रोजगार, शिक्षा, महंगाई, जाति-धर्म, हत्या, बलात्कार आदि जैसी घटनाएँ हेडलाइन हुआ करती थी।
मीडिया विपक्ष से क्यों नहीं पूछ रही सवाल
लेकिन आज मीडिया पूरी तरीके से सत्ता पक्ष की बातें करने में लगी हुई है। सत्ता की गुलामी करती है, सही को झूठा और झूठे को सही साबित करने में लगी रहती है। मीडिया का काम सत्ता पक्ष से सवाल करना होता है। लेकिन मीडिया सत्ता बिपक्ष से सवाल करती है। आप के सरकार में क्या हुआ था उनकी कमियों और उनकी नीतियों को दोसी ठहराया जाता है। जबकि मीडिया का पहला काम है सत्ता पक्ष से सवाल करना उनकी नीतियों तथा उनकी बनाई गई योजनाओं की विफलताओं को उजागर करना ना कि सत्ता बिपक्ष से सवाल करना। एक तरह से देखा जाए तो पिछली सरकार कुछ नहीं कर सकी। उनके द्वारा बनाई गई नीतियाँ और योजनाएँ जमीनी स्तर पर विफल रही। लेकिन क्या आप की सरकार पिछले 10 वर्ष से सत्ता में है लेकिन फिर भी आप जनता के विचारों और अपने वादों पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं। अगर ऐसा है तो यानि आप भी पिछली सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों पर काम कर रहे है। आज हर गाँव मोहल्ले, नुक्कड़ नुक्कड़ पर हिन्दू मुस्लिम का मुद्दा बहस छिड़ा हुआ है। आज जहाँ युवाओं के हाथ में पेन और कॉपी होना चाहिए वहीं उस हाथ में हथियार है। जो एक विशेष समुदाय के पीछे हाथ धोके लगे हुये है यह मीडिया की ही देन है। मीडिया द्वारा जो भी चीज दिखाया जाता है उस पर जनता आँख मूँद के विश्वास कर लेती है। पहले मीडिया निष्पक्ष थी 2014 के बाद से मीडिया एक पक्षीय बात करने लगी। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि, उनका सत्ता के हाथों बिकना, देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों के हाथ बिकना। आज मीडिया एक राजनीतिक पार्टी के पक्ष में काम करती है। क्या दिखाना है, क्या हेडलाइन्स होंगे, जिससे जनता में सत्ता पक्ष के लिए सकारात्मक भाव प्रकट हो। सत्ता जो चाहती है वहीं मीडिया चैनल दिखाते है। आर्थिक, शिक्षा, रोजगार जैसी मूलभूत सवालों को दरकिनार करके जाति-धर्म जैसे सवालों को राजनीतिक मुद्दे को सामाजिक मुद्दा बना दिया गया है। जिससे आज समाज कई भागों में बट गया है।
आए दिन हो रहे हैं धार्मिक दंगे
यही कारण है की आए दिन जगह-जगह धार्मिक दंगे होते रहते है। हिन्दू राष्ट्र यह वर्तमान समय का सबसे चर्चित मुद्दा है जो हिन्दू विचारधारा के लोगों के मुख से यही निकलता है ‘मुझे हिन्दू राष्ट्र और अखंड भारत चाहिए। मुगलों के औलादों भारत छोड़ो, जयचंद के औलाद, आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों आदि आदि नामों से किसी एक विशेष धर्म जाति को टारगेट किया जा रहा है। हिन्दू खतरे में है, मुझे तो नहीं लगा हिन्दू खतरे में है। क्या 2014 के पहले हिन्दू खतरे में नहीं था? पढ़ा-लिखा युवा भी आज मीडिया और सत्ता के बोल बोल रहे है। मीडिया का काम लोकहित और राष्ट्र हित के लिए निष्पक्ष होना चाहिए। लेकिन राष्ट्र हित की बात आगे के चक्कर में और सरकार के प्रति लोगों के दृष्टि और उनके सुनने की क्षमता को मीडिया कंट्रोल कर लेती है। और सरकार के प्रति सकारात्मक दृष्टि जनता को दिखती है। इतने कॉन्फिडेंट और जोश के साथ बोलेंगे कि जनता यह मान लेती है कि उनके हित की बात हो रही है बल्कि इसके पीछे कुछ और चल रहा होता है।
समाज के अहम मुद्दे है मीडिया से गायब
आज तक किसी सरकार ने प्रचार-प्रसार पे इतना पैसा खर्च नहीं किया होगा जितना वर्तमान सरकार ने खर्च कर चुकी है। अपनी छवि चमकाने के लिए देश के आधी सम्पत्तियों को उद्योगपतियों के हाथों बेच दिया गया है। तब भी मीडिया इसके लिए खबर चलाना उचित नहीं समझा। देश अर्थव्यवस्था के मामले में दुनिया में 3 नंबर पर है लेकिन अभी भी आम व्यक्ति की आय में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। देश भले ही आगे बढ़ा हो लेकिन अभी भी देश के लोग वहीं है जहाँ से उठाया गया था। जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं आया है। अगर देश की जनता की आय दोगुनी हुई है तो मुफ्त में 80 करोड़ लोगों को राशन क्यों देना पड़ रहा है? अगर किसानों की आय में बढ़ोत्तरी हुई है तो वह आए दिन सरकार के विरोध में क्यों हो जाती है? नौकरियों के नाम पर पेपर लीक करवा के भर्ती परीक्षा को निरस्त कर दिया जाता है। कुछ के मामले कोर्ट में है और कोर्ट ने अपना पक्ष भी सरकार को दे दिया फिर भी प्रदेश सरकार भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने में समय बिता रही है। जिनको बदलाव दिखता है उनके पास एक खास तरह का चश्मा होता है जिसको अंधभक्त का चश्मा कहा जाता है। उनकी नजर में सभी चीजें बदल गई है लेकिन वास्तविक कुछ और होता है। जिसको हर बार या तो छुपाया जाता है या तोड़ा जाता है। समाज के जो अहम मुद्दे है वह मीडिया डिबेटों से गायब है। राष्ट्र हित और जातीय धर्म के सवालों में पक्ष विपक्ष के नेता व पार्टी प्रवक्ता घंटों समय बिता देते हैं। और उनको यह डिबेट करना भी पड़ता है क्यों कि मीडिया के सवाल है, जिसको जवाब देना है। लोकहित की बातों को उनके आवाजों को दबा दिया जा रहा है। लोग न्याय माँग रहे है लेकिन उनको सरकार से कोई न्याय की उम्मीद नजर नहीं आती है और स्थिति यहाँ तक खराब हो जाती है कि अपने हक अधिकार के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है।
गरीबों के हित में क्यों नहीं है सरकार
सत्ता पक्ष अपनी सत्ता को बनाए रखने ले लिए कुछ भी कर सकती है और कुछ भी करवा भी सकती है। सत्ता गरीबों के हित के लिए नहीं बल्कि उद्योगपतियों के हित के लिए काम कर रही है। क्योंकि चुनाओं में इन्हीं लोगों के द्वारा पार्टी को फंड के रूप में धन मिल जाता है। क्या मीडिया के सिद्धांतों में यह दर्ज है कि राष्ट्र हित के बातों के आगे लोगों की समस्याओं की बात न की जाए? क्या मीडिया पूँजीपतियों का दलाल है? मीडिया के तेवर हमेशा से बदलते आए है कभी पैसों के लिए तो कभी अपनी कंपनी बचाने के लिए, सत्ता पक्ष के गुणगान हमेशा गाते रहते हैं।
क्या मीडिया का काम सत्ता का गुणगान है
सत्ता के गुणगानों में आप इतना व्यस्थ हो जाते हैं, कि आप गरीबों, बेरोजगारों, किसानों, युवाओं, आदि के सवालों और उनकी माँगों, उनकी समस्याओं को ही भूल जाते हैं। जबकि आज के मीडिया में सच्चे एंकर और निष्पक्ष बात करने वाले बहुत कम बचे है। अगर है भी तो वह अपने सच्ची पत्रकारिता के बदले गुलामी न चुनते हुये उन जैसे चैनलों को लात मार दी। सत्ता ऐसे पत्रकारों को और मीडिया एंकरों को रखती है जिससे उनको ही फायदा हो और उनकी हर एक नाकामियों को छुपाए तथा जनता में एक भ्रम बनाए रखे कि कही से कोई मसीहा आएगा और इनकी जरूरतों को पूरा करेगा। देश में कोई भी घटना हो उसमें मीडिया राज्य में सरकार कौन सी है यह पता करके घटना को कवरेज देती है। और उसके हिसाब से टीबी चैनलों पर चिल्ला-चिल्ला कर पत्रकारिता कराते है।
वर्तमान समय में मीडिया की चुनौतियाँ
हमारे देहात में एक कहावत है कि ‘बिना पेंदी का लोटा’ लेकिन मेरे गाँव में इसको अलग तरीके से कहते है जो कहना मैं उचित नहीं समझती। मीडिया कभी भी पलट सकती है। सरकार ऐसा नहीं चाहती कि कोई भी ऐसा पत्रकार हो जो उनकी छवि को धूमिल करे लेकिन करने वाले करते है। सत्य को सत्य ही बोला जाता है। सत्य कभी झूठा नहीं होता है। हाँ भले कुछ साक्ष्यों के आधार पर कमजोर हो सकता है। आज जीतने भी मीडिया पत्रकारों ने सत्ता पक्ष के खिलाफ बोला है उनको उनके नौकरियों से रिजायन देना पड़ा है। और आज वह अपनी अलग स्वतंत्र पत्रिकारिता कर रहे है। और वह जनता के हितों की बात करते है उनके हकों की बात करते है, उनके अधिकारों की बात करते है। आज स्वतंत्र मीडिया का दौर है जहाँ हर एक युवा हाथ में माइक और कैमरा लिए सरकारी कामों, घटनाओं, आदि को दिखाते रहते है। कभी-कभार ऐसा भी होता है कि जो खबरें होती वह इन्हीं चैनलों तक सिमट कर रह जाती है। बड़ी मीडिया चैनलों तक यह खबर नहीं पहुँच पाती है। अगर पहुँचती भी है तो उसमें मीडिया का कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है। वह खबर बड़े-बड़े शहरों तक नहीं पहुँच पाती। जहाँ मीडिया द्वारा लोगों से सवाल किए जाने चाहिए वहाँ मीडिया से लोग सवाल कर रहे है। यह सवाल जायज़ है क्योंकि जनता की आवाज मीडिया चैनलों से गायब है। कभी कभार मीडिया भी जनता के शक के घेरे में आ जाती है। और लगता है कि यह भी सरकार से मिल के उनके कार्यों में मदद कर रही हो। देश की सबसे बड़ी समस्या महंगाई और नौकरी है जिसका सबसे अधिक अभाव है। इसको लेकर के जनता में आक्रोश है। जिस प्रकार 9 वर्षों में महंगाई बढ़ी है उसके हिसाब से 70 वर्ष के पिछली सरकारों के आँकड़े कम नजर आते हैं। आज कल सत्ता पक्ष महंगाई जैसे शब्द को अपने शब्दकोश से गायब कर दिया है। महंगाई पर कोई पत्रकार सत्ता से सवाल पूछ ले तो उलटा ही पत्रकार को ही जलील कर दिया जाता है। सरकार की आलोचना करना भी लोगों को सजा के तौर पर भुगतनी पड़ी है।
मीडिया का समाज पर प्रभाव
मीडिया का जनता पर प्रभाव की बात की जाए तो, मीडिया का जो प्रभाव है जनता पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव दिखाई देते है। सकारात्मक प्रभाव के संदर्भ में सरकार की नीतियाँ, उनकी योजनाएँ, उनके कार्यक्रम, सरकार द्वारा दी जाने वाली आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं आदि का मीडिया के माध्यम से लोगों में इसके प्रति जागरूकता को बढ़ावा देना। तथा नकारात्मक प्रभाव के संदर्भ में वह बाते जो धर्म-जाति और किसी विशेष समुदाय के प्रति नफरती बयान बाजी, जिसका सीधा असर श्रोताओं पर पड़ता है। और उसका रिजल्ट आए दिनों कई राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा के तौर पर देखा जा सकता है। इतने बड़े लोकतान्त्रिक देश में पत्रकारिता ही तो है जो लोगों का संचार का माध्यम बना हुआ है। और जनता को भी पता है कि मीडिया उनके लिए क्या कर रही है।
सरकार नहीं निभा रही अपना दायित्व
सरकार जनता को कभी भी एक व्यक्ति के रूप में नहीं देखा अगर देखा है तो उसको एक संख्या के रूप में। जब वोटों की बात आती है तब लोग गरीबों तथा असहायों के साथ उनके घरों पर भोजन करने उनकी मदद करने आदि कामों में सरकार जाती रहती है। सुरक्षा के दृष्टि से न तो महिलाएँ सुरक्षित और न तो युवाओं का भविष्य सुरक्षित है। देश की अर्थव्यवस्था भले ही मजबूत स्थिति में हो लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिल्कुल भी सही स्थिति नहीं है। मजदूरों की मजदूरी में कोई इजाफा नहीं हुआ और महंगाई आसमान छु रही है। गरीब व्यक्ति और गरीब होता जा रहा है और अमीर व्यक्ति और अधिक धनवान होता जा रहा है। वर्तमान मीडिया मेरे नजर में तो ऐसी दिख रही है। क्या वर्तमान सरकार ने जमीनी स्तर पर लोक कल्याण के लिए मजबूती से कोई काम किया है? अंत में मैं कहना चाहूंगी कि, मैल्कम एक्स के अनुसार “मीडिया के पास ताकत हैं कि वो आपके मन में उन लोगों से नफरत करना सीखा देगें जिन्हें सताया जा रहा है और उन लोगों से प्यार करना,जो उन्हें सता रहें हैं।”
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